जगह कौन सी क्या बताऊं, जन्नत है ये,
खुद खुदा भी मांगता होगा, वो मन्नत है ये।
अरावली की पहाड़ियों के बीच, बरखा में नाचते देंगे मोर दिखाई,
गौरैया, मैना, बुलबुल के साथ देखो तो बैठे होंगे सात भाई,
कबूतर, कौवे, चील बिना यहां तो जैसे गगन भी लगता सूना है,
भारद्वाज, कठफोड़वे के संग मिलेंगे एग्रेट, रूफस ट्रीपाई।
परिंदे बहुत हैं यहां माना पर, पशुओं को न भूल जाना तुम।
ढूंढो तो वे ज़रूर मिलेंगे, बस सब्र न देखो खोना तुम।
यहां शूकर, वानर भी हैं, रहना तुम ज़रा संभल संभल,
गिलहरियों के पीछे ही न कहीं देखो तुम हो जाना गुम!
पेड़, पौधे भी खूब हैं यहां, फलों – फूलों की भरमार है,
जामुन, आम, नीम, बबूल के संग देखो वो कचनार है।
गेंदा, चंपा, पारिजात, सप्तपर्णी से सुगंधित रहता ये स्थान है
और किस किस के नाम मैं लूं, वनस्पति यहां हजार हैं।
जगह कौन सी क्या बताऊं, लगती जैसी जन्नत है ये,
खुद खुदा भी मांगता होगा, शायद वो मन्नत है ये।
माना हमने विकास शहर का होता बहुमोल है,
मगर प्राकृति का यह सुख, स्मरण रहे अनमोल है!
होड़ बहुत है, मांग भी, कृत्रिम ऐशो आराम की,
पर ध्वंस किया जो, भर न सकोगे निसर्ग का वो मोल है!
प्रदूषण की परत से प्रचलित वैसे तो यह स्थान है,
हरियाली की इस चादर में बसा कोई और ही जैसे जहान है।
दो पल यहां रुक कर तो देखो, खो कर इसे क्या पाओगे?
रोज़ आडंबरों के लिए क्यों करते हम प्राकृति को कुर्बान हैं?
जगह कौन सी है क्या मैं बताऊं, जन्नत है ये,
खुद खुदा भी रोज़ मांगता है जो, वो मन्नत है ये।